Sunday, June 19, 2011

तू है

तू है मेरे मन की मैना, मै हूँ काक सरीखा।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा ।।
तू है गंगा जैसी पावन,
में हूँ गटर सरीखा,
तू अरहर की दाल सी मंहगी,
मैं हूँ मटर सरीखा;
तू चन्दन की पावन ज्वाला, मैं कंडा-राख सरीखा।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा । ।
तेरी धवलता सर्फ़ एक्सेल,
मैं विम बार सरीखा;
मर्सडीज़ सी तू कम्फर्टेबल,
मैं खटरा कार सरीखा;
नाक तेरी तोते के जैसी, मैं सूकर नाक सरीखा ।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा । ।
तू जैसे शेयर मार्केट है,
मैं सब्जी मण्डी हूँ;
एक हाईवे के जैसी तू,
मैं कोई पगडण्डी हूँ;
तेरा घूर्णन मिक्सी जैसा, मैं हूँ चाक सरीखा ।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा। ।
तू बोतल कोका-कोला की,
मै उसका ढक्कन हूँ,
तू अमूल का देसी घी,
मैं देहाती मक्खन हूँ;
तू इ-मेल नेट का कोई, मै खालिस डाक सरीखा।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा । ।
तू है मेल शताब्दी जैसी,
मैं कोई पसेंजर,
तू हरियाली है बागों की,
मैं जमीन हूँ बंजर;
तू हिन्दुस्तानी सहनशीलता, मैं हूँ पाक सरीखा।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा। ।
ताजमहल सी तू सुन्दर हैं,
मैं इक ध्वस्त किला हूँ;
तू लखनऊ की शान निराली,
मैं जालौन जिला हूँ;
हरा-भरा तू पेड़ घनेरा, मैं सूखी शाख सरीखा।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा। ।
तू गुलाब का फूल महकता,
मैं हूँ फूल धतूरा;
तू मधुबाला सी सुन्दर है,
मैं हूँ निपट लंगूरा;
तू सोने सी वेशकीमती, मैं हूँ ख़ाक सरीखा।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा। ।
डी.टी. एच.सी तेरी सर्विस,
मैं टूटा एंटीना;
तू सर्दी की धुप सुहानी,
मैं हूँ जेठ महीना;
ध्रुव प्रदेश का तू है भालू, मैं हूँ याक सरीखा।
तू कोई कचनार फूलती, मैं हूँ ढाक सरीखा। ।

तुम

तुम मेरे आस-पास रहते हो,
जाने क्यों फिर उदास रहते हो;
एक उम्मीद-ए-वफ़ा जान-ए-मुहब्बत होती,
जान कर भी बे-आस रहते हो;
जब भी तुमसे मैं जुदा होता हूँ ,
लम्हा-लम्हा मेरी तलाश रहते हो;
तेरी बातों मैं कोई शहद सा घुलता,
दिल मैं बन के मिठास रहते हो;

प्यार

ढेरों प्यार मुफ्त मिलता था
बचपन था ये बात पुरानी।
चोरी कर यौवन में पाया ,
ये भी अब बन गयी कहानी॥
आज मांगने पर भी हमको,
कोई प्यार नहीं देता है।
हाय बुढ़ापा! इसीलिए तो,
ढली उम्र में दुःख देता है॥

डॉ अनुज भदौरिया



Saturday, June 18, 2011

जीवन

उलझनें-हैरानियाँ, जीवन नहीं है
ये सोचना नादानियाँ, जीवन नहीं है
क्या मिला क्या खो गया,
किस बात का अफ़सोस तुमको ?
जो मिला वो है तुम्हारा,
जो हो गया संतोष तुमको ;
भाग्य की बेईमानियाँ जीवन नहीं है
ये सोचना नादानियां जीवन नहीं है
क्या गलत है क्या सही है ?
समय का है चक्र देखों ;
तुमने जिस पल को जिया है,
करो उस पर फक्र देखो ;
वक़्त की शैतानियाँ जीवन नहीं है
ये सोचना नादानियाँ जीवन नहीं है
तुम अकेले थे कहाँ ?
इस जन्म से अवसान तक ;
सैकड़ों की भीड़ लेकर,
जाओगे शमशान तक ;
वाद की वीरानियाँ जीवन नहीं है
ये सोचना नादानियाँ जीवन नहीं है
हर किसी का मोल करना,
ज़िन्दगी या हाट है ?
क्या खरीदोगे, सभी कुछ
यहाँ बंदरबांट है;
लाभ है या हानियाँ जीवन नहीं है
ये सोचना नादानियाँ जीवन नहीं है

सरस्वती वंदना