Monday, July 18, 2011

इक प्रात होगी.


नव दिवाकर, नव किरण संग,
कल नयी इक प्रात होगी.
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.
प्रात उगना सूर्य का
नित डूब जाना साँझ ढलते ;
क्या कभी देखा किसी ने,
बेवसी में हाथ मलते ;
है पता उसको नियति का,
बाद उसके रात होगी.
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.
रात-दिन, सुख-दुःख सरीखे,
रोज आते रोज जाते;
हम न जाने क्यों उन्ही को,
सोचकर के छटपटाते ;
आज गम है, कल ख़ुशी की,
देखिये बरसात होंगी .
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.
चल रही तो ज़िन्दगी,
रुक जाएगी तो मौत है ;
उलझनें, हैरानियाँ तो,
ज़िन्दगी की सौत है ;
हर समय विश्वास से चल,
मंजिलें फिर साथ होंगी.
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.

Thursday, July 14, 2011

कभी प्यार सजाकर देखो.

अपनी आँखों में कभी प्यार सजाकर देखो.
कैसे लगते हो कभी बज़्म में आकर देखो.
मेरे हाथों की लकीरों में भला क्या दिखता है,
हाल-ए-दिल ढूँढना हैं तो दिल में समाकर देखो.
कौन कहता है कि मैं आपसे महफूज़ नहीं,
दिल में यादों कि शमां फिर से जलाकर देखो.
इतना आसन नहीं गम को छिपाकर हँसना,
साथ मेरे कभी यूँ आप भी मुस्कराकर देखो.
दर्द खुद-ब-खुद ग़ज़ल की बंदिश हैं,
आप कोई भी ग़ज़ल आज सुनाकर देखो.
मेरी आवाज़ की लर्जिश का सबब प्यार नहीं,
शाम-ए-गम तुम कभी पैमाना उठाकर देखो.
कौन दौलत है ज़माने में मुहब्बत से बड़ी,
प्यार से प्यार में तुम प्यार लुटाकर देखो.
देखने वालों ने क्या खूब तमाशे देखे,
लोग तूफ़ान उठा देंगे साथ आकर देखो.
मर भी जाऊंगा कहीं याद में तेरी ये 'अनुज',
लौट आऊंगा, कभी प्यार से बुलाकर देखो.

 डॉ० अनुज भदौरिया "जालौनवी"

Sunday, July 10, 2011

बुन्देली पावस गीत

कैसो झम-झम बरसो पानी,

सूनी धरती लगे भरी.

सूनी धरती लगे भरी की,

सूखी धरती लगे हरी. कैसो बरसो..............

गर्र-गर्र बदरा गर्जत है,

बिजरी भई दीवानी,

आस-पास सब लगे समुन्दर,

भरो खुपडियन पानी,

गिर गयी भीत बगल बालेन की,

उनने जो परसाल धरी. कैसो बरसो ...............

झींगुर झांझ बजावैं

दादुर अपनों राग अलापें ,

बचे-कुचे मैं कुटकी-मछरा

हेमोग्लोबिन नापें,

बिजरी बालेन की बेईमानी,

अबकी साल बड़ी अखरी. कैसो बरसो.........................

भोलू-छोटू सीख रहे है

अंगना मैं तैराकी,

बैठ बरोठे हेर रही है

उनकों बूड़ी काकी,

बाकी सब मिल साथ चलायें

देखो नाव भरी बखरी. कैसो बरसो...............

Saturday, July 9, 2011

गुमसुम सी ज़िन्दगी है

गुमसुम सी ज़िन्दगी है, सहमा सा आदमी है.
सब कुछ है इस शहर में पर प्यार की कमी है.
गैरों से क्या गिला है अपनों से क्या शिकायत,
जब वक़्त बेवफा है, हालात मौसमी है.
कई दिन से उनने घर में माँ-बाप नहीं देखे,
ये फ़र्ज़ पर खुदगर्जी की इक गर्द सी जमी है.
अरसा गुज़र गया है चेहरे की हँसी देखे,
सीरत भी बेमज़ा है, सूरत भी मातमी है.
सहमा हुआ सा उनसे मई बात नहीं करता,
कुछ राज़ खोल देगी, आँखों में जो नमी है.
किस से वयां करून मैं इज़हार-ए-मुहब्बत का,
है भीड़ मैं अकेले, हमराह भी हमीं है.
मेरे दीवानेपन को लोग, पागलपन समझ बैठे.
मगर पागल भी थे कुछ जो दीवानापन समझ बैठे.
भला क्या आपने समझा हमारे प्यार का मतलब?
इसे हम दोस्तों सच मानिये जीवन समझ बैठे.
जिन्हें ये बोझ लगते कभी अहसास-ए-उल्फत के,
वही शायद मुहब्बत को कोई उलझन समझ बैठे.
जो बैठे है तुम्हारी जुस्तुजू में रह ताकने हम,
मुझे वख्शीश देकर के भिकरिपन समझ बैठे.
में पागल हूँ, दीवाना हूँ, में जो भी हूँ तुम्हारा हूँ,
मुझे उनसे है क्या लेना जो आवारापन समझ बैठे.
चलो इक बार फिर से प्यार में हम डूब कर देखें,
लगेगी ज़िन्दगी गुलशन जो सूनापन समझ बैठे.
में मुहफट था जो हर इक बात को यूँ बोल देता था,
'अनुज' की साफगोई को गवारापन समझ बैठे.

Thursday, July 7, 2011

कलमकार नहीं.

यूँ ही लिख लेता हूँ कलमकार नहीं.
दिल का मारा हूँ फनकार नहीं.
दर्द सीने मैं दफ़न रखता हूँ,
हँस जो लेता तो गुनाहगार नहीं.
मेरे अहसास की ना कीमत करना,
दिल का मालिक हूँ, बाजार नहीं.
तेरी यादों के मेरी आँखों मैं जुगनू है,
नींद से बोल दियातेरा तलबगार नहीं.
है मयस्सर किसे अहसास-ए-वफ़ा यारो,
वक्त भी आजकल शायद वफादार नहीं.
मैंने जो चाहा किया, कोई अफ़सोस नहीं,
मैं शहंशाह हूँ, सिपहसलार नहीं.
सबकी आँखों मैं बेबसी दिखती,
किसको गम अपना कहूं, मददगार नहीं.
आजकल हर कोई दीवाना लगे,
लैब पे अलफ़ाज़ है पर प्यार नहीं.
मेरे घर से उजाले डरते 'अनुज',
उनको मालूम यहाँ त्यौहार नहीं।