Thursday, July 14, 2011

कभी प्यार सजाकर देखो.

अपनी आँखों में कभी प्यार सजाकर देखो.
कैसे लगते हो कभी बज़्म में आकर देखो.
मेरे हाथों की लकीरों में भला क्या दिखता है,
हाल-ए-दिल ढूँढना हैं तो दिल में समाकर देखो.
कौन कहता है कि मैं आपसे महफूज़ नहीं,
दिल में यादों कि शमां फिर से जलाकर देखो.
इतना आसन नहीं गम को छिपाकर हँसना,
साथ मेरे कभी यूँ आप भी मुस्कराकर देखो.
दर्द खुद-ब-खुद ग़ज़ल की बंदिश हैं,
आप कोई भी ग़ज़ल आज सुनाकर देखो.
मेरी आवाज़ की लर्जिश का सबब प्यार नहीं,
शाम-ए-गम तुम कभी पैमाना उठाकर देखो.
कौन दौलत है ज़माने में मुहब्बत से बड़ी,
प्यार से प्यार में तुम प्यार लुटाकर देखो.
देखने वालों ने क्या खूब तमाशे देखे,
लोग तूफ़ान उठा देंगे साथ आकर देखो.
मर भी जाऊंगा कहीं याद में तेरी ये 'अनुज',
लौट आऊंगा, कभी प्यार से बुलाकर देखो.

 डॉ० अनुज भदौरिया "जालौनवी"

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