Monday, July 18, 2011

इक प्रात होगी.


नव दिवाकर, नव किरण संग,
कल नयी इक प्रात होगी.
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.
प्रात उगना सूर्य का
नित डूब जाना साँझ ढलते ;
क्या कभी देखा किसी ने,
बेवसी में हाथ मलते ;
है पता उसको नियति का,
बाद उसके रात होगी.
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.
रात-दिन, सुख-दुःख सरीखे,
रोज आते रोज जाते;
हम न जाने क्यों उन्ही को,
सोचकर के छटपटाते ;
आज गम है, कल ख़ुशी की,
देखिये बरसात होंगी .
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.
चल रही तो ज़िन्दगी,
रुक जाएगी तो मौत है ;
उलझनें, हैरानियाँ तो,
ज़िन्दगी की सौत है ;
हर समय विश्वास से चल,
मंजिलें फिर साथ होंगी.
कुछ नयापन सा समेटे,
कल नयी इक बात होगी.

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