Wednesday, August 3, 2011

क्या-क्या सितम

क्या-क्या सितम ज़माने के हँसकर गुजरता।
किस्मत की इक लकीर को लिखता-मिटारता॥
ख्वाबों के घरोंदों की अजाब खासियत है ये ,
हर रोज़ उन्हें नीद से जगकर निखरता॥
यादों की लकीरों से कोई अक्स बन गया,
उसको कभी रोकर कभी हँसकर संवारता।।
हर दर्द मुनासिब है मुझे प्यार के लिए,
सीने में हर-एक दर्द को छिपाकर उतारता॥
उल्फत का रंग खून-ए-जिगर से मिला 'अनुज',
अब ज़िन्दगी की राहें रह-रहकर निहारता॥

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