Wednesday, September 28, 2011

मेरी सुन ले तू मनुहार


तू ही जग की पालनहारी,तू ही भाग्य विधाता।
तेरे दर पर आया हूँ मैं, शेरों वाली माता॥
सबके तू भंडार भरे हैं, खाली कोई न जाता।
मैं भी अपनी विनती लेकर, द्वार तुम्हारे आता॥
मेरी सुन ले तू मनुहार,
आया मैया जी के द्वार।
आया मैया जी के द्वार,
कर दे मेरा बेड़ा पार॥
तू ही अम्बे, तू जगदम्बे, तू ही जग कल्याणी,
सबके मन के भाव तू जाने, सबके दिल की वाणी;
तुझसे बड़ा न कोई, तेरी महिमा अपरम्पार॥
एक लाल का सुख-दुःख जग में, माता ने पहचाना,
इस बंधन से नहीं है कोई, बंधन और सुहाना;
आज निभा कर इस बंधन को, कर दे तू उद्धार॥
संकट हरणी, आज हमारे, बिगड़े काज संवारो,
पाप किये जो इस पापी ने, सारे पाप उतारो;
तू जो दया करे तो होगा, माँ मुझ पर उपकार॥
दीन, दुखी, निर्धन और कोढ़ी, द्वार तुम्हारे आये,
जो माँगा सो पाया सबने, खाली हाथ न जाए;
मैं तो मांगूं अपनी माँ से, बस थोडा सा प्यार॥
डॉ० अनुज भदौरिया

Tuesday, September 13, 2011

तुमसे ही शुरू होकर

इक सुबह शुरू होती, इक रात ख़तम होती।
तुमसे ही शुरू होकर हर बात ख़तम होती॥
जुल्फों की अज़ब रंगत, बादल से चुरायी है,
बिखरें तो रोशनी की, बारात ख़तम होती॥
है चाँद भी शर्मिंदा, देखा जो तेरा चेहरा,
तेरे रूबरू तो उसकी, औकात ख़तम होती॥
मिलता हूँ जब भी तुमसे, हर पल हसीन लगता,
आँखों से अश्क-ए-गम की, बरसात ख़तम होती॥
हासिल 'अनुज' हुई है, मंजिल-ए-मुहब्बत की,
अब तो सफ़र की तुमपे, शुरुआत ख़तम होती॥

डॉ० अनुज भदौरिया

Monday, September 12, 2011


ऐसे गुजारता हूँ, मैं ज़िन्दगी को अब।
रह-रह पुकारता हूँ, मैं ज़िन्दगी को अब॥
अब दूरियों का दिल पे, बहुत बोझ लग रहा,
बेवश निहारता हूँ, मैं ज़िन्दगी को अब॥
दिल मैं हुई है शिरकत, उस अजनबी की जब,
दिल मैं उतारता हूँ, मैं ज़िन्दगी को अब॥
सांसों ने उसकी जबसे, मेरे जिस्म को छुआ है,
हर पल संवारता हूँ, मैं ज़िन्दगी को अब॥
आँखों में बसी उसकी , सूरत वो सुहानी सी,
अक्सों में निखारता हूँ, मैं ज़िन्दगी को अब॥

डॉ० अनुज भदौरिया