Tuesday, September 13, 2011

तुमसे ही शुरू होकर

इक सुबह शुरू होती, इक रात ख़तम होती।
तुमसे ही शुरू होकर हर बात ख़तम होती॥
जुल्फों की अज़ब रंगत, बादल से चुरायी है,
बिखरें तो रोशनी की, बारात ख़तम होती॥
है चाँद भी शर्मिंदा, देखा जो तेरा चेहरा,
तेरे रूबरू तो उसकी, औकात ख़तम होती॥
मिलता हूँ जब भी तुमसे, हर पल हसीन लगता,
आँखों से अश्क-ए-गम की, बरसात ख़तम होती॥
हासिल 'अनुज' हुई है, मंजिल-ए-मुहब्बत की,
अब तो सफ़र की तुमपे, शुरुआत ख़तम होती॥

डॉ० अनुज भदौरिया

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