Friday, October 7, 2011

सदियों से संहारा रावण,
लेकिन रावण मर न पाया।
हमने पुतले दहन किये है,
अंतस अब तक नहीं जलाया॥
आज हमारे अंतस में,
उस रावण का विश्राम देखिये,
कौन आज अब रावण मारे,
कहाँ आज अब राम देखिये,
मारें अपना अंतस रावण,
जो अब तक यूँ मर न पाया॥
आज जला दो मन के सारे,
रावण, कुम्भकरण, घननाद,
आज मिटा दो मन में सारे,
द्वेष, ईर्ष्या और विषाद,
आज आचमन कर दो उसका,
जो मन अब तक तर न पाया॥
शासन के जो कुम्भकरण हैं,
और समाज के रावण मारो,
जो जीवन को नरक बनाये,
ऐसे सारे कारण मारो,
तुम ऐसा परिवर्तन लाओ,
कोई जो अब तक कर न पाया॥
तभी मानेगा विजय-पर्व यह,
सदियों से जो सँवर न पाया॥

डॉ० अनुज भदौरिया "जालौनवी"